सखि,
तुम्हें तो पता ही है कि मेरा पौत्र शिवांश 29 मई को 6 माह का हो गया है । अब उसकी काली काली जुल्फें हवा में उड़ने लगी हैं । मुझे तो डर लगने लगा था कि कहीं उसकी उड़ती जुल्फों पर किसी हसीन गुड़िया का दिल आ गया तो ? समस्या खड़ी हो जाती ना । तुमने वो गाना तो सुना ही होगा
उड़ें जब जब जुल्फें तेरी
कंवारियों का दिल मचले जिंद मेरिये।
तो इससे पहले कि किसी कंवारी का दिल मचलता , इन जुल्फों को ही "शहीद" करने का प्लान हमने बना लिया । हमारे परिवार में सब बच्चों का मुंडन संस्कार दौसा जिले में स्थित मेंहदीपुर बालाजी में ही होता है । मेंहदीपुर बालाजी का नाम तो सुना होगा ना सखि ?
क्या कहा , नहीं सुना ? बहुत प्रसिद्ध मंदिर है हनुमान जी का । पूरे भारत में बड़ा नाम है । विशेषकर उत्तरी भारत में । दूर दूर से लोग आते हैं यहां पर दर्शन करने और अपने कष्टों का निवारण करवाने के लिए । यहां के प्रेतराज सरकार बहुत प्रसिद्ध हैं । कहते हैं कि जिन व्यक्तियों पर "ऊपरी आत्मा" यानि भूत प्रेत का साया होता है , उन्हें प्रेतराज सरकार के दरबार में पेश किया जाता है । प्रेतराज सरकार कोतवाल की तरह उस "भूत प्रेत " की ठुकाई करते हैं । ठुकाई के कारण वह भूत प्रेत उस व्यक्ति को छोड़कर भाग जाता है ।
जब मैं बहुत छोटा था । यानि स्कूल में पढता था तो यह मंदिर हमारे गांव महवा से केवल 20 किलोमीटर दूर था । हम लोग साइकिल से घूमते घूमते भी यहां आ जाया करते थे । तब देखते थे कि लोग (स्त्री और पुरुष दोनों) इस मंदिर में उल्टे लटके रहते थे । अपने हाथों से अपनी छाती में मुक्के मारते थे , गर्दन को बुरी तरह घुमाते थे । दीवार पर पीठ ठोकते थे । ऐसे कुटाई होती थी उन भूत प्रेत की । तब जाकर उनका इलाज होता था ।
उसके बाद जब मेरा पुत्र हिमांशु हुआ और उसका मुंडन संस्कार 1989 में हुआ । तब मेंहदीपुर बालाजी में जाने का अवसर मिला । फिर अब जाने का अवसर मिला है । इतने वर्षों के बाद ऐसा लगा कि जैसे वह स्थान पूरी तरह बदल गया है । श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत होने लगी है । इसीलिए मैंने शुक्रवार का दिन चुना । शनिवार और मंगलवार को तो इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने को भी जगह नहीं मिलती है । आज बिल्कुल भी भीड़ नहीं थी और आराम से दर्शन हो गये ।
अभी भी कुछ लोग भूत प्रेत वाले वहां पर झूम रहे थे । मतलब अभी भी भूत प्रेतों का "इलाज" हो रहा था । अपना कार्यक्रम संपन्न करके शाम तक हम लोग वापस जयपुर आ गये । मेंहदीपुर बालाजी जयपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर है । अच्छी धार्मिक जगह है । अगर जाना चाहें तो अवश्य जायें । विशेषकर भूत प्रेतों का इलाज देखने । उसके लिए मंगल और शनिवार ही श्रेष्ठ रहेगा ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
3.6.22
Radhika
09-Mar-2023 12:49 PM
Nice
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Gunjan Kamal
06-Mar-2023 08:56 AM
Nice
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Kaushalya Rani
08-Jun-2022 05:32 PM
Nice
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